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गुरुवार, 20 जून 2013 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

मटक- मटक कर चलती है....!!!

मटक -मटक कर चलती है ,राह  भटक कर चलती है ,
बस मन में इक उल्फत है ,बस वो मुझको  छू जाये ...१ 

चाहे बदन छिल जाए ,सारे  अरमां निकल जाएँ ,
 अंज़ाम चाहे  कैसा हो ,बस वो मुझको छू जाये ....२ 

खिल जायेगा  मेरा चेहरा ,जब होगा उसके सर सेहरा ,
ज़रूर बजेगी  शहनाई   , बस वो मुझको छू जाये …. ३ 

कहे कुछ भी सोचे ज़माना ,उस ओर  नहीं  हमने  जाना ,
मिल जायेगा   दुनिया का खजाना ,बस वो मुझको  छू जाये ....४ 

''कमलेश'' मेरी ये फितरत है ,किसी को क्यों नफरत है ,
चाहे कुछ भी हो जाये ..,बस वो मुझको  को छु जाये।। .....५


शुक्रवार, 15 मार्च 2013 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

क्यों ? फिजां में सरगोशियों का, बाज़ार गर्म है ...!!!

क्यों ? फिजां में सरगोशियों का,  बाज़ार गर्म है ,
कुछ नुमाया हुआ है यहाँ , या दिल का भ्रम है।

हर गली के  हर  मोड़ पर ,  होने लगे  क्यों  चर्चे तेरे ,
है हकीकत !इसमें कुछ या ,ज़माना हुआ बे-शर्म  है। 

कौन लगाएगा पाबंदियां ,इनकी तल्ख जुबानो पर ,
कोई अदावत नहीं  ,फिर ज़माना क्यों हुआ बे-रहम है। 

हुआ क्यों? बदनाम ये इश्क ,जिंदगी के हर चौराहे पर ,
इश्क  बे-पर्दा हुआ  या ,जमाने का ''आशिकों ''पर करम है।

''कमलेश'' खुल के इज़हार करो ,उससे अपने दिल की बात ,
ख़ुदा की  नियामत को सिजदा , नही होता कोई जुरम है।।


सोमवार, 20 जून 2011 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

हर मोड़ जिंदगी का ..!!


हर मोड़ जिंदगी का लगे , है इक सीधा रास्ता ,
जिसके हर मोड़ से लगे ,है सीधा वास्ता ,

उन लम्हों को सजा रखा है, दिल के फूलदानों में ,
हसरतों ने महफूज़ किया ,जिन्हें वक्त के तूफानों में ,

नजर भर कर देखें तो कहते ,क्या हुआ प्यार है ,
ना देखा जब उस नजर से ,तो हुआ जीना दुश्वार है ,

इस कदर हो बंदिशें जमाने की, जिन्दगी जीने पर ,
तो जमाना क्यों हलकान होता है, हमारे पीने पर ,

मिले सबको किसी की चाहत ,ये नही कोई जरूरी है ,
दुनिया में कितनो की अब तक, हसरत रही अधूरी है ,

'कमलेश' कभी वक्त की कश्ती रुकी नही किनारे पर ,
किनारा खुद आ मिले कश्ती को, वक्त के इशारे पर ॥




गुरुवार, 10 जून 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

भीग जाती थी तेरी आँखें...!!!


भीग जाती थी तेरी आँखें, मुझे याद करके ,
तब क्यों देखा !तुमने मुझे जी भर के

जब सामने थी तो ,टिक सकी ये मुझ पर ,
अब क्यूँ करती हैं शिकवा, ये रह -रह करके

इनकी उल्फत का कोई ,सानी है इस जहाँ में ,
बसाये रखती हैं ये यादें ,अपने में मर करके

कौन समझे इन आँखों की, दीवानगी को ''कमलेश ''
भीगने
की अदा अता की, खुदा ने इनको जी भर के
मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

उल्फत नही थी दिल में...!!!

उल्फत नही थी दिल में ,तो दिल को रुलाया कैसे ?
मंजिल तलक कसमों को, यूँ ही तुमने भुलाया कैसे ?

गर पता होता दिल को, तेरी इस बात का,
क्या दर्द भरा सिला दिया ,मेरे जज्बात का

पहले ही मोड़ लेते अपने ,अरमानों की नाव को ,
गर दिलाया होता यकीं , प्यार कि बरसात का

मझधार में छोड़ दी पतवार ,प्यार के इमकान की ,
फना हो के चुका दी हमने, कीमत तेरे अहसान की

हमेशा मेरी रूह दुआ करे ,तेरे आबाद रहने की ,
पर दे खुदा तुझे मौका ,किसी को अपना कहने की

'कमलेश 'तुम्ही ने इस जिन्दगी को, इक दम से मोड़ा था ,
शिकवा है तोडा उसी दिल को, जिससे तुमने ही जोड़ा था
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

कोशिशें तमाम की उनसे...!!

कोशिशें तमाम की उनसे मुलाकात की ,
तासीर --कशिश समझे वो जज्बातकी । .......

गर्दिश में हों सितारे तो ,हर कोशिश नाकाम है ,
जलाते उनकी यादों के दिए ,बीती हर शाम है ,
कभी रौशनी उन तलक पहुंचेगी इस बात की .........

बुझती उम्मीदों को अपनी बाँहों का सहारा दे दो ,
बुझने से पहले जाने का बारीक़ इशारा देदो ,,
कसम है उन लम्हों की ,कसम है तुझे उस रात की ........

मिट जाएगी यह हस्ती ,तेरे दीदारे जुनू में ,
जाएगा जम तेरा नाम दिल के थमते लहू में ,,
पैगामे-दिल जो लिखा तेरे वास्ते ,बहा के ले गयी झड़ी बरसात की ...............


'कमलेश' हसरत बाकी है लबों पर अब तलक ,
गवाही भरतें हैं , जमीं आसमां ओर तारे फलक ,,
मिल जाओ तडपाओ अपने प्यार को ,अब जिद भी है किस बात की ...................