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शुक्रवार, 15 मार्च 2013 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

क्यों ? फिजां में सरगोशियों का, बाज़ार गर्म है ...!!!

क्यों ? फिजां में सरगोशियों का,  बाज़ार गर्म है ,
कुछ नुमाया हुआ है यहाँ , या दिल का भ्रम है।

हर गली के  हर  मोड़ पर ,  होने लगे  क्यों  चर्चे तेरे ,
है हकीकत !इसमें कुछ या ,ज़माना हुआ बे-शर्म  है। 

कौन लगाएगा पाबंदियां ,इनकी तल्ख जुबानो पर ,
कोई अदावत नहीं  ,फिर ज़माना क्यों हुआ बे-रहम है। 

हुआ क्यों? बदनाम ये इश्क ,जिंदगी के हर चौराहे पर ,
इश्क  बे-पर्दा हुआ  या ,जमाने का ''आशिकों ''पर करम है।

''कमलेश'' खुल के इज़हार करो ,उससे अपने दिल की बात ,
ख़ुदा की  नियामत को सिजदा , नही होता कोई जुरम है।।


शुक्रवार, 21 सितंबर 2012 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

.फुर्सत में कभी अपने दिल को......

 फुर्सत में कभी अपने  दिल को ,समझाया कीजिये  ,
न खेले किसी के दिल से , इसे नसीहत  तो दीजिये । 

आदत में   है शुमार इसकी, या इसका शौक है ,
कभी-2 पड़ता है महंगा सौदा ,इसे समझाया तो  कीजिये । 

खिलौने की तरह तोड़  दिल ,क्यूँ इतराता है अपने आप पर ,
टूटे दिल जुड़ते हैं बमुश्किल ,ये इससे फरमाया तो कीजिये ।

उजड़ने को  उजड़ जाते हैं ,आबदे -चमन भी इसकी बेवफाई से  ,
इससे कहो  उजड़े चमन में किसी का आशियाँ भी बसाया तो कीजिये    । 

बिलखते  दिलों को देख क्या मिलता है  दिले-सकूं इसको ,
प्रेम -रस की कभी  ठंडी फुहार भी  बरसाया  तो कीजिये  । 

क्यूँ छुड़ा कर हाथ भागता है, किसीसे दूर ये अब ,
'कमलेश 'जो  हैं उलझने दी  इसने, उनको सुलझाया तो कीजिये..
शनिवार, 24 सितंबर 2011 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

कैसी है ! ये स्याह रात ...!!

कैसी है ! ये स्याह रात , कैसी ये तन्हाई है ,
फिर क्यूँ ऐसे हालत में, तेरी याद आयी है ,

ना कोई सबब बनता है ,दिल तुझे याद करे ,
मगर जिगर में क्यूँ कर, हूक सी उठ आयी है ,

पुराने जख्म ना कुरेदे कोई, यादों के खंजर से ,
बड़ी मुश्किल से इससे ,दिल ने निजात पाई है ,

कैसे जी लेते है वो ! बे-वफाई के दागों के साथ ,
कभी नही हुई देखो जमाने में, इनकी रुसवाई है ,

जलाल--इश्क को ज़नाब , कमतर ना आंकिये ,
'कमलेश' इश्क के जलवों में ये कायनात नहाई है





गुरुवार, 22 अप्रैल 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

जलन -यह -कैसी -जलन ..!!!

  • थी चांदनी तारों के आगोश में ,देख!चाँद जल गया !
  • जलन भी थी इतनी तेज, सूरज भी पिघल गया !

  • तपिस तेरे मेरे प्यार की, पहुंच गयी कूंचों तक !
  • बारास्ता जो भी गुजरा इधर से ,वो भी मचल गया !

  • ऐसा नही की विरानियाँ ही हैं, इस राहे-गुजर में ,
  • जो भी आया दर--इश्क में ,गाता ग़ज़ल गया !

  • यहाँ इतनी आसां नही होती ,राहें चाहत की ,
  • कुछ तो सीधे चलते चले गये ,कोई फिसल गया !

  • 'कमलेश'शुक्रिया कैसे अदा करुँ मै उसका ,
  • जिसके प्यार के सहारे ,आखिर सम्भल गया !!



गुरुवार, 4 मार्च 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

इश्क ...!!!

दुनिया की नजर में इश्क करना हराम है ?
तभी तो इश्क इतना दुनिया में बदनाम है

कहते हैं इश्क में अँधा है सारा जमाना ,
कौन ? फिर इस को करता इतना बदनाम है

इश्क बिना चलती इस कायनात की रवायतें ,
इश्के-खुदा से रवां दुनिया की हर शाम है

गर खुद जिन्दगी करती है इश्क जिन्दगी से ,
जिसका इश्क में जीना - मरना, इश्क ही काम है .

''कमलेश ''बदनाम करो , इश्क को जमाने में ,
जिसने किया हुआ नाम उसका ,नही तो गुमनाम है