क्यूँ तल्खियां यहां की दस्तूर बन रही हैं,
कुछ बस्तियां चमन की नासूर बन रही हैं।
कलियां क्यूँ बिखरी हैं राहों में
साथ कांटों के ये
बा-कसूर बन रही हैं।
कमलेश' हो ना हो कुछ असर
हैं फिज़ा की ताशीर में
कुछ अच्छी बुरी तस्वीर बन रही है।।
कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹
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