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शुक्रवार, 15 मार्च 2013 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

क्यों ? फिजां में सरगोशियों का, बाज़ार गर्म है ...!!!

क्यों ? फिजां में सरगोशियों का,  बाज़ार गर्म है ,
कुछ नुमाया हुआ है यहाँ , या दिल का भ्रम है।

हर गली के  हर  मोड़ पर ,  होने लगे  क्यों  चर्चे तेरे ,
है हकीकत !इसमें कुछ या ,ज़माना हुआ बे-शर्म  है। 

कौन लगाएगा पाबंदियां ,इनकी तल्ख जुबानो पर ,
कोई अदावत नहीं  ,फिर ज़माना क्यों हुआ बे-रहम है। 

हुआ क्यों? बदनाम ये इश्क ,जिंदगी के हर चौराहे पर ,
इश्क  बे-पर्दा हुआ  या ,जमाने का ''आशिकों ''पर करम है।

''कमलेश'' खुल के इज़हार करो ,उससे अपने दिल की बात ,
ख़ुदा की  नियामत को सिजदा , नही होता कोई जुरम है।।


गुरुवार, 4 मार्च 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

इश्क ...!!!

दुनिया की नजर में इश्क करना हराम है ?
तभी तो इश्क इतना दुनिया में बदनाम है

कहते हैं इश्क में अँधा है सारा जमाना ,
कौन ? फिर इस को करता इतना बदनाम है

इश्क बिना चलती इस कायनात की रवायतें ,
इश्के-खुदा से रवां दुनिया की हर शाम है

गर खुद जिन्दगी करती है इश्क जिन्दगी से ,
जिसका इश्क में जीना - मरना, इश्क ही काम है .

''कमलेश ''बदनाम करो , इश्क को जमाने में ,
जिसने किया हुआ नाम उसका ,नही तो गुमनाम है

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

हसरत -ए-दिल ...!!

तेरी हसरत थी जो दिल को ,वह खत्म हो गयी ,
अब वादे-वफा निभानी बस रस्म हो गयी

जी जाते गर तूने, रस्मे -उल्फत निभायी होती ,
बर्बादी की जगह, जिन्दगी की राह दिखाई होती

कहाँ ? देखे थे इन आँखों ने बहारों के सपने ,
तपती रेत के सहरा में फुहारों के सपने

उम्मीदों के समन्दर में ढूँढा था ,तेरे प्यार का मोती ,
सीप 'संग 'को समझ लेता, गर तुम साथ होती

उजड़ जाते गर बसने से पहले ,
रो लेती आँखें हंसने से पहले

दिल टूटता ,अरमां तार-तार होते ,
तुम बेवफा होती , हम बे ऐतबार होते

कुदरत करती रही हमेशा, बेरुखी मेरे साथ में ,
अब भी जिन्दगी की डोर, थमा दी तेरे हाथ में

ये है मेरी किस्मत ,नही किसी का दोष है ,
इस मुकाम पर देखो ?कुदरत भी खामोश है

''कमलेश'' क्या कहेगा जमाना, इस बात पर ,
जिन्दगी लगा दी है ,जिन्दगी की बिसात पर