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शुक्रवार, 21 सितंबर 2012 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

.फुर्सत में कभी अपने दिल को......

 फुर्सत में कभी अपने  दिल को ,समझाया कीजिये  ,
न खेले किसी के दिल से , इसे नसीहत  तो दीजिये । 

आदत में   है शुमार इसकी, या इसका शौक है ,
कभी-2 पड़ता है महंगा सौदा ,इसे समझाया तो  कीजिये । 

खिलौने की तरह तोड़  दिल ,क्यूँ इतराता है अपने आप पर ,
टूटे दिल जुड़ते हैं बमुश्किल ,ये इससे फरमाया तो कीजिये ।

उजड़ने को  उजड़ जाते हैं ,आबदे -चमन भी इसकी बेवफाई से  ,
इससे कहो  उजड़े चमन में किसी का आशियाँ भी बसाया तो कीजिये    । 

बिलखते  दिलों को देख क्या मिलता है  दिले-सकूं इसको ,
प्रेम -रस की कभी  ठंडी फुहार भी  बरसाया  तो कीजिये  । 

क्यूँ छुड़ा कर हाथ भागता है, किसीसे दूर ये अब ,
'कमलेश 'जो  हैं उलझने दी  इसने, उनको सुलझाया तो कीजिये..
बुधवार, 19 अगस्त 2009 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

पंखुड़ी लरज गई . !


पंखुड़ी लरज गयी ,

पड़ी ओस की बूँद ,

सकुच कर फ़िर कली बन गयी ,,।

कब तक शर्माती ,इस ज़माने से ,

रात बीती ,फ़िर सुबह ,खिल कर तन गई ।,

पहले डरती थी ,औरों से ,

अब ख़ुद इठलाती भवरों से

चल
गया पता ,कब खिलना है

किस किस , से कब मिलना है

पर वक्त का था ,क्या पता ,,

टूट गई डाली ,जहाँ टूटना था पत्ता

सुंदर
,सुघर ,सलोने सपने ,

हो सके उसके अपने ,,

जीवन चक्र का सही यही संदेश ,

नही मिलना था ,नही मिलता है !''कमलेश ''।।