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सोमवार, 20 अगस्त 2012 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

हंसी बेशकीमती है,,,,,खुल कर हंसो ..!!!


ना हंसी की कोई कीमत दे पाया, ना रोने का कोई मूल्य उतारेगा ,
बस अगर कोई दे पाया हंसी , उसी हंसी से उसको संवारेगा ।

हंसने को कोई भी हंस दे ,पर उसमे दिल की गहराई हो ,
हंसने की वजह हो जायज , जो दिल से बाहर आयी हो ।

हंसना ऐसी प्रकिर्या है कुदरत से ,सबको मिलती है ,
कोई अंदर दफन रखता है ,चेहरे पर किसी के खिलती है

खुलकर हंसना जिन्दगी में ,रब की एक नियामत है,
पर किसी का किसी पर हंसना ,उसके लिये कयामत है।

'कमलेश' ख़ुशी मनाएं खुलकर, जोर=जोर से हंस कर ,
दो सबको हंसी - ख़ुशी उनके, मन-मानस में बस कर ॥


सोमवार, 28 फ़रवरी 2011 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

क्यूँ खेलते हैं दिल से ...!!?


क्यूँ ?खेलते हैं दिल से ,इस जहाँ के लोग ,
ये इतने हैं बेदर्द !ये हैं कहाँ के लोग !!?

रखते नही लिहाज़ जरा भी, मुहब्बत के का ,
रुतबा दिखाते हैं हमेशा, अपने झूठे गरूर का

गर नही चला जाता था मंजिल--जानिब ,
तो क्यों ?मेरी तरफ हाथ बढ़ाना जरूर था

बस अपना हो मकसद हासिल,ये तेरी सोच थी ,
इसमें मंजिल का नही ! सोच 'का ही कसूर था

'कमलेश' देखेगी दुनिया प्यार के, नाम को इस तरह ,
कहेगी !! ये तो प्यार नहीं दिमागे-फितूर था
गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

वाह जनाब क्या ??जमाने के दस्तूर बदल गये ..!!

वाह !! ज़नाब क्या ?जमाने के दस्तूर बदल गये ,
तेज चलने वालों से आगे आलसी निकल गए

माद्दा नहीं था जिनमे अपने घर तक जा सकें ,
आज वो मिजाज- -पुर्शी को सियाचिन निकल गए

जो देते रहे नसीहत उम्र भर जमाने को ,
जब देखी खनक हनक-- हुश्न वो भी मचल गये

बेदाग था दामन जिनका रुसवा हो गये जमाने में ,
बदनाम--जमाना शख्स पहले ही सम्भल गये

'कमलेश'क्या बदला है जमाने ने अपना रंग ,
जिनको जाना था 'कल'वो आज ही निकल गए