क्यूँ खेलते हैं दिल से ...!!?
क्यूँ ?खेलते हैं दिल से ,इस जहाँ के लोग ,
ये इतने हैं बेदर्द !ये हैं कहाँ के लोग !!?
रखते नही लिहाज़ जरा भी, मुहब्बत के सऊर का ,
रुतबा दिखाते हैं हमेशा, अपने झूठे गरूर का ।
गर नही चला जाता था मंजिल-ए-जानिब ,
तो क्यों ?मेरी तरफ हाथ बढ़ाना जरूर था ।
बस अपना हो मकसद हासिल,ये तेरी सोच थी ,
इसमें मंजिल का नही ! सोच 'का ही कसूर था ।
'कमलेश' देखेगी दुनिया प्यार के, नाम को इस तरह ,
कहेगी !! ये तो प्यार नहीं दिमागे-फितूर था ॥
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2 comments:
बस अपना हो मकसद हासिल,ये तेरी सोच थी ,
इसमें मंजिल का नही ! सोच 'का ही कसूर था ।bahut khoob....
बस अपना हो मकसद हासिल,ये तेरी सोच थी ,
इसमें मंजिल का नही ! सोच 'का ही कसूर था ।bahut khoob....
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