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शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

दिल्ली में हुई दुखदायी एवम शर्मनाक घटना का विक्षोभ.....??!!!!!

 अब क्या लिखें !! हम   इस पर  ,लेखनी भी शर्माती है ,
कुकृत्य  करने वालों की श्रेणी , पुरुष ?वर्ग में आती है , 

कानून देश का और समाज,  कब तक इसमें अक्षम होगा,
अपनी घर की अस्मिता  बचाने में देश कब सक्षम होगा .
अब इसका कोई  उपाय  करो जहाँ बाड़  खेत को खाती है ............[1]

मानवता इस कलंक को कब तक सर पर  ढोएगी ,
जब भी होगी इसकी बात कहीं ,फूट-फूट कर रोएगी ,
वो कैसा अभागा दिन था ,रह -रह कर व्यथा सताती है ........[2]

कैसी  सुरक्षा ?  कैसी व्यवस्था !सब ओर स्याह  बवंडर है ,
 ये घटना  वहीँ घटती   है जहाँ महान ''लोकतंत्र''का मन्दिर है ,
जहाँ 'न्याय की देवी ''भी  नव पाठ[संसोधन]  पढने जाती है .......[3]

'कमलेश'   जहाँ सम्मान नहीं ,देवी, वात्श्लय  स्वरूपा  नारी का ,
धिक्कार है उन  पिशाचों  को  ,  इस  जग की मानवता सारी का .
 हज़ारों हज़ार  फांसियां  दो  इनको ,जहाँ एक बार चढ़ाई जाती है .......[4] 






गुरुवार, 17 जून 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

कौन कहता है ..............मै इन्सान नहीं हूँ ..!!


कौन कहता है ........मै इन्सान नहीं हूँ ,
हरकतें तो वही हैं ,मतलब भगवान नहीं हूँ

मन में सब दुनियावी इच्छओं का ढेर लगा है ,
सब है फिर भी मुझको भी, ९९ का फेर लगा है

मन की सारी चिंताएं बिलकुल, सबके जैसी हैं ,
मेरी हैं सबसे अलग, तुम्हारी बताना कैसी है

हम तो सबका भला मांगते, ऐसा मन कहता है ,
पर हमेशा अपने भले की ,दुआ ये मन करता है

हूँ इन्सान पर कहता हूँ'' मै बेईमान नही हूँ '',
अगर यह सच है, तो लगता है ''इन्सान नही हूँ

सारी खूबियाँ जब मुझमे है ,तो इसमें क्या है शक ॥?
''कमलेश'' भजो भगवान को , इन्सान बनने तक



शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

खुद-गर्ज़ जमाना ....!!!

देखो? इन्सान कितना खुद- गर्ज़ हो गया ,
खून के रिश्ते निभाना भी, इक कर्ज़ हो गया

जिन्दगी भर उठाये रखा ,जिनको सीने पर ,
वही अहसास -अपनों का ,मर्ज़ हो गया

आज महसूस हुई जब, जरूरत उनकी ,
उनका पल भर का आना , अदा-फर्ज़ हो गया

क्यों ?बेरुखी करते है ,जमाने के लोग ,
वाकया खूने-दिल -स्याही से, दर्ज़ हो गया

मामूली खरोंच पर जिनकी, मेरी निकल जाती थी आह !
''कमलेश''वही खून आज, सर्द हो गया