मेरे अरमानों !के महल कब के ढह गये ,
और वक्त की लहरों के संग बह गये ,
क्या इतनी कच्ची थी मेरे प्यार की नीवं ,
जमाने के थपेड़े भी इससे सहे न गये ।
सच्चे प्यार से बनाते गर आशियाने अपने ,
जो आये थे बर्बाद करने वो यहीं रह गये ।
अब भी वक्त है संभालो अंजुमन अपनी ,
जाते हुए तूफ़ान ये इशारे से कह गए ।
कमलेश'' क्यों छोड़ दे !अभी से जीना जिन्दगी ,
अरमानों का क्या !कभी ये गये कभी वो गये ...!!
4 comments:
अब भी वक्त है संभालो अंजुमन अपनी ,
जाते हुए तूफ़ान ये इशारे से कह गए ।
और जो इशारा न समझे उसका क्या?
सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर!
अरमानों के महल रेत के घरौंदो जैसे ही होते हैं!
अब भी वक्त है संभालो अंजुमन अपनी ,
जाते हुए तूफ़ान ये इशारे से कह गए ।
सुन्दर भाव हैं !
आभार🙏🌹🌺
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