जुदाई ,...!!!
दीया जलता रहा मेघ बरसते रहे ,
उनके दीदार को नैन तरसते रहे ।
जा बसे हो जब से पिया तुम परदेश में ,
नैन इक-इक पल उसी राह में भटकते रहे ।
कैसी टीस उठती है इस दिल के जख्म में ,
दर्दे-जुदाई में रात-दिन बिलखते रहे ।
जोडती हूँ माला बिताये लम्हों की मै सदा ,
पर जितने ये जुड़ते उतने ही बिखरते गए ।
तेरी सूरत की इस दिल पर गहरी छाप है ,
धुंधली यादों के साए भी निखरते रहे ।
''कमलेश''उम्मीद है तुम जल्दी घर आ जाओगे ,
दूर हो जाएँगी तन्हाईयाँ मिटेंगे सन्नाटे जो पसरते रहे ॥
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