मन तडपता है देख कर, उसकी नादानियाँ ,
न समझ 'दिल की' करती है मनमानियां ।
पहले जैसा अब कुछ भी नहीं ऐसा ,
अब तो बस होती हैं ,हैरानियाँ ।
जहाँ मचलती थी बहारें चमन में ,
आज बस !बसती हैं उधर वीरानियाँ ।
ऐसी फितरत नही थी, उसकी कभी ,
ये बस हैं!! वक्त की मेहरबानियाँ ।
जिन्दा रहेंगी ,यादें मेरी तेरे जहन में ,
हवाएं सुनाएंगी ''कमलेश''की कहानियां ॥
न समझ 'दिल की' करती है मनमानियां ।
पहले जैसा अब कुछ भी नहीं ऐसा ,
अब तो बस होती हैं ,हैरानियाँ ।
जहाँ मचलती थी बहारें चमन में ,
आज बस !बसती हैं उधर वीरानियाँ ।
ऐसी फितरत नही थी, उसकी कभी ,
ये बस हैं!! वक्त की मेहरबानियाँ ।
जिन्दा रहेंगी ,यादें मेरी तेरे जहन में ,
हवाएं सुनाएंगी ''कमलेश''की कहानियां ॥
3 comments:
बहुत बढ़िया लिखा है!
यदि आप छन्द की मात्राएँ भी गिन लिया करें तो बहुत ही सुन्दर रचना कहलायेगी!
जहाँ मचलती थी बहारें चमन में ,
आज बस !बसती हैं उधर वीरानियाँ ।
-जरा पता ठिकाना भी मालूम हो भाई...
बहुत खूब!!
...बेहतरीन रचना!!!
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