हम कब के मरगये थे तेरे प्यार मे ,
अदायगी रसमे -जनाज़ा तो है ज़माने की,
अदायगी रसमे -जनाज़ा तो है ज़माने की,
पता चल गया होता बहुत पहले,
पर तूने कसम दी थी ना बताने की ,,
पर तूने कसम दी थी ना बताने की ,,
बन गयी थी जिंदगी एक बेजान बुत जब हमने ,
आहटसुनी थी किसे बेगाने की,,
जिंदगी हो गयी थी मौत पर भारी ,
जब आया था वक़्त ,प्यार मे मिट जाने की,,
आहटसुनी थी किसे बेगाने की,,
जिंदगी हो गयी थी मौत पर भारी ,
जब आया था वक़्त ,प्यार मे मिट जाने की,,
जिंदगी देख कर मरी फिर एक बार ,
जब तेरी बेताबी दिखी परायी बाहों मे सिमट जाने की ,,
'कमलेश' मैने खुद ही मूंद ली आँखें , क्यूँ की ,
तुमने कर दी थी तैयारी मेरे मर जाने की,,
8 comments:
हम कब के मरगये थे तेरे प्यार मे ,
अदायगी रसमे -जनाज़ा तो है ज़माने की,
पता चल गया होता बहुत पहले,
पर तूने कसम दी थी ना बताने की ,,
पहली चार पंक्तियों ने ही दिल को छू लिया !
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
पता चल गया होता बहुत पहले,
पर तूने कसम दी थी ना बताने की ,,
आज ये कसम क्यो तोड दी
सुन्दर रचना
सही है, यू तो बिना इश्क के जिंदगी बेकार है और जब इश्क हो तो कमबख्त जीने नहीं देता
बढ़िया शेर लगाये हैं!
बेपनाह मोहब्बत है जिससे भी है। लाजवाब भाव ...
मेरे भाव कुछ इस तरह से रहे ...
"किसी के तीसरे के सामने / स्पष्ट कर देना / प्रिय और स्वयं के / मध्य की गोपनीयता / अपराध है किसी को छेड़ने जैसा।
यह अपराध मैं भी कर चुका हूँ / स्पष्टवादी बन्ने के चक्कर में / कर चुका हूँ प्रायश्चित / प्रत्येक स्पष्टीकरण के बाद।
बेपनाह मोहब्बत है जिससे भी है। लाजवाब भाव ...
मेरे भाव कुछ इस तरह से रहे ...
"किसी के तीसरे के सामने / स्पष्ट कर देना / प्रिय और स्वयं के / मध्य की गोपनीयता / अपराध है किसी को छेड़ने जैसा।
यह अपराध मैं भी कर चुका हूँ / स्पष्टवादी बन्ने के चक्कर में / कर चुका हूँ प्रायश्चित / प्रत्येक स्पष्टीकरण के बाद।
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