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गुरुवार, 6 सितंबर 2012 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

जल्लादों के शहर में अहसासों,......!!!

जल्लादों के शहर में अहसासों, का मोल क्या ? है ,
जहाँ मुफलिसी हो शर्मिंदा ,वहां सांसों का मोल क्या?है।

जिनके मनों में अँधेरा हो बेरुखी का, मुद्दतों से छाया ,
उधर चिरागे-मुहब्बत जलाने में, झोल क्या? है।

जब तक नहीं दिखती गुरबत ,उनको, दिल की आँखों से ,
फरियादों की मशालों को जलाने का, मोल क्या ?है।

उनके आंसूओ में जिनको दीखता, साफ-सफ़ेद पानी ,
आँखों में उनकी इन जज्बातों का, बताओ मोल क्या? है।

जहाँ शर्मिंदा होती है जिंदगी जिनकी, सरपरस्ती की छाँव में ,
भ्रष्टाचार के बाग में राजनितिक ,दरख्तों का मोल क्या?है।

''कमलेश''जहाँ छुपकर सूरज , निकलता हो अँधेरे से ?
उस महातिमिर को दूर करने में, 'जुगनुओं' का मोल क्या? है।।


शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

मेरे प्यारे वतन ..!!

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मेरे अहले -वतन तू , ज्यादा उम्मीद कर ,
क्यूँ की तेरे ही गद्दार तुझे, बेचने पे तुले हैं !

जिन को दी थी चाबी ,सम्भालने को इस देश की ,
उनके इमानो के त्ताले, पहले ही खुले हैं !

पाक- दामन समझ, जिनको पूजती है दुनिया ,
अरे ।!! बाप ये सब आपस में घुले -मिले हैं !

जिस तेरे चमन में उडती थी चहचहाती चिड़ियाँ ,
अब जरा !गौर से देखो वहां , अब सांप पले हैं !

गौरो -फ़िक्र है ,तेरी तेरे बच्चों को, जान से ज्यादा ,
क्या करें 'कमलेश'तेरे ही कानून ने, लब सिले हैं !

जिन्होंने तोडना था तिलस्म, नापाक पड़ोसी का ,
पता चला ..!उनसे पहले ही ,उनके दिल
मिले हैं !!