क्यों पंछी हुआ उदास ,अपना नीड़ छोड़ कर ,
जिसे संजोया था ,तिनका -तिनका जोड़ कर।
न किया गिला किसी से ,न शिकायत किसी की ,
चुप-चाप उड़ चला वो ,अपनी पीड़ ओढ़कर।
मुड़ के देखा तो था , पड़ा बिखरा हुआ अतीत ,
पर जा रहा था वो,कुछ सच्चे रिश्ते तोड़ कर।
खट्टी-मीठी यादे चल रहीं थी ,चलचित्र की तरह ,
दिल करता था देखता रहे, चित्रों को जोड़ कर।
टीस सी उठ रही है दिल में , उस दर को छोड़ते ,
है! इल्तिजा वक्त से ,ले आये वो ''वक्त'' मोड़ कर।
'कमलेश'कहते हैं ये सब ,किश्मत का रचा खेल है ,
कभी कौन ? शौक से गया है ,अपना ''नीड़ ''छोड़ कर।।
जिसे संजोया था ,तिनका -तिनका जोड़ कर।
न किया गिला किसी से ,न शिकायत किसी की ,
चुप-चाप उड़ चला वो ,अपनी पीड़ ओढ़कर।
मुड़ के देखा तो था , पड़ा बिखरा हुआ अतीत ,
पर जा रहा था वो,कुछ सच्चे रिश्ते तोड़ कर।
खट्टी-मीठी यादे चल रहीं थी ,चलचित्र की तरह ,
दिल करता था देखता रहे, चित्रों को जोड़ कर।
टीस सी उठ रही है दिल में , उस दर को छोड़ते ,
है! इल्तिजा वक्त से ,ले आये वो ''वक्त'' मोड़ कर।
'कमलेश'कहते हैं ये सब ,किश्मत का रचा खेल है ,
कभी कौन ? शौक से गया है ,अपना ''नीड़ ''छोड़ कर।।
6 comments:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन १५ मई, अमर शहीद सुखदेव और मैं - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सुन्दर रचना। धन्यवाद :)
नये लेख : 365 साल का हुआ दिल्ली का लाल किला।
सुन्दर रचना। धन्यवाद :)
नये लेख : 365 साल का हुआ दिल्ली का लाल किला।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (16-05-2013) के परिवारों को बचाने का एक प्रयास ( चर्चा मंच- 1246 ) मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कौन ख़ुशी से जाता है अपना नीड़ छोड़ कर बिलकुल सही कहा ,अपने प्रिय स्थान को छोड़ने के दर्द को बखूबी शब्दों में उकेरा है आपने हार्दिक बधाई
खट्टी-मीठी यादे चल रहीं थी ,चलचित्र की तरह ,
दिल करता था देखता रहे, चित्रों को जोड़ कर...बहुत सुन्दर
http://boseaparna.blogspot.in/
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