मंगलवार, 8 जून 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

आज तक ....!!! नही मिली ..


आज तक वो नही मिली ,जिसकी दरकार थी ,
झूठी निकली मेरी तमन्ना ,पीड़ मिली हार बार थी

तिनका -तिनका जोड़ परिंदों ने, घर अपना बना लिया ,
ना मिला कोई मेरे घर को,वैसे इनकी भरमार थी

जब तक उसने मुड कर देखा ,तब तक हम दूर थे ,
मुड कर उन तक जा ना सके ,पैर बहुत मजबूर थे

जिसको लेकर वो उलझे थे ,उनकी ग़लतफ़हमी थी ,
जिसे वो जीत समझे थे , वास्तव में उनकी हार थी

''कमलेश''इन उल्फतों को क्या नाम देंगे आप सब ,
जिसे आप समझ बैठे ''हाँ ''वह उनकी इंकार थी !!

6 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

''कमलेश''इन उल्फतों को क्या नाम देंगे आप सब ,
जिसे आप समझ बैठे ''हाँ ''वह उनकी इंकार थी !!

वाह वाह वाह बेहतरीन

दिलीप ने कहा…

waah bahut khoob...

संजय भास्‍कर ने कहा…

कविता मन मोहती है....सरल भाव दिल पर अपना असर छोड़ते हैं...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर !
कविता को एक नए अंदाज़ में परिभाषित किया है आप ने !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत सुंदर ग़ज़ल... हमेशा की तरह लाजवाब....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर रचना!
इसकी तो चर्चा "चर्चा मंच" में भी है!