।
हम चाहे तो आसमान को, टुकड़ों में तोड़ दें ,
सागरों के मुहाने को, जिधर चाहे मोड़ दें ।
रौशनी की मोड़ देते हैं राह , उसकी ही राह में ,
बिजलियों को कैद कर दें ,उन्ही की सैरगाह में ।
मजाल है कोई चला जाये , हमारे मुहं पर बोलकर ,
सिंहों के भी दांत गिने हैं ,हमने मुहं खोलकर ।
फिर दुनिया को क्यों नही ,लोहा मनवा पाते हैं ,
नर्म ,अस्थिर ,धर्म-विभाजित 'राष्ट्र'क्यों कहलाते हैं ?
अब नवयुवकों को बदलना होगा , इस सड़े निजाम को,
'कमलेश'अब निश्चय कर करो ,देश के इस काम को ॥
हम चाहे तो आसमान को, टुकड़ों में तोड़ दें ,
सागरों के मुहाने को, जिधर चाहे मोड़ दें ।
रौशनी की मोड़ देते हैं राह , उसकी ही राह में ,
बिजलियों को कैद कर दें ,उन्ही की सैरगाह में ।
मजाल है कोई चला जाये , हमारे मुहं पर बोलकर ,
सिंहों के भी दांत गिने हैं ,हमने मुहं खोलकर ।
फिर दुनिया को क्यों नही ,लोहा मनवा पाते हैं ,
नर्म ,अस्थिर ,धर्म-विभाजित 'राष्ट्र'क्यों कहलाते हैं ?
अब नवयुवकों को बदलना होगा , इस सड़े निजाम को,
'कमलेश'अब निश्चय कर करो ,देश के इस काम को ॥
2 comments:
वाह क्या बात है...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
राष्ट्र को समर्पित ...बहुत खूब
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