कैसे बताऊँ उस दर्द को जो नासूर हो गया ,
दर्द को हंस कर सहने को , दिल मजबूर हो गया ।
वक्त अपनी ही चाल से कैसे,वक्त काट देता है यहाँ ,
वक्त जिसे समझे थे एक, उसको भी बाँट देता हैं यहाँ ।
दर्द को भी दर्द होता होगा जरूर एक बार जिन्दगी में ,
जब कोई दर्द बिछुड़ता होगा , उसकीअपनी जिन्दगी से ।
ना हो उनको कोई अहसास ,कोई हमें फ़िक्र नही ,
कहीं अहसास ही ना ख़त्म हो जाये, बस फ़िक्र है यही ।
''कमलेश'' गुजारिस हैं कोई ना बदले रिश्तों के रूप को ,
लगे ना नजर किसी की , रिश्तों की चमकती धूप को .
2 comments:
bahut khub
दर्द को भी दर्द होता होगा जरूर एक बार जिन्दगी में ,
जब कोई दर्द बिछुड़ता होगा , उसकीअपनी जिन्दगी से ।
बहुत सुन्दर लेखन!
एक मर्मस्पर्शी कविता!
एक टिप्पणी भेजें