कितना भी हो अत्याचार , जन -विश्वास तोड़ नही पाओगे ,
हमको मिटाने के चक्कर में, खुद ही यहाँ मिट जाओगे ।
साम -दाम और दंड भेद हत्कंडे सारे, अपनाओ तुम ,
चाहे निरपराध को अपराधी, कितना भी ठहराओ तुम ।
नहीं माफ़ करेगा जान मानस ,ना इतिहास दोहराएगा ,
जो जुल्म हो रहे इस वक्त यहाँ ,कोई क्यों भूलना चाहेगा ।
यहाँ प्रजा-तन्त्र है ना की राज-तन्त्र ,यह इनको समझाना होगा ,
इस तन्त्र की सीमायें हैं इन ''काले'' अंग्रेजों को बतलाना होगा ।
नहीं किसी से बैर हमें ना, करते किसी वर्ग का ''फेवर'' हैं ,
यह मात्र उस की झलकी है, जो इस वक्त देश के तेवर हैं ।
शासकों वक्त की कद्र करो ,ये वक्त कभी नहीं झुठलाता है ,
कभी ''कमलेश'' ताज बना ,पाषाण कभी शिव बन जाता है ॥
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