क्या ? ईमानदारी को कीमत चुकानी पड़ेगी ,
झूठ से सच को मुहं की खानी पड़ेगी ।
इतनी धुंध छाई है झूठ की हर तरफ ,
सच्चाई को अपनी परछाई छुपानी पड़ेगी ।
जब हम बोलते हैं की सच है यही ,
उस सच की भी सच्चाई बतानी पड़ेगी ।
सौ बार कहने पर बन जाता है ''बछड़ा -मेमना ,
मतलब साख सच्चाई को भी गंवानी पड़ेगी ।
तलवार की धार बन कर रह गयी है सच्चाई ,
गर चलना है तो पैरों की चमड़ी कटानी पड़ेगी ।
मायूसी भरी रात में भी उम्मीदों के चिराग जलते हैं ,
क़ुरबानी के मोम से सच्चाई की लौ जलानी पड़ेगी ।
पतंगों के माफिक जान देकर शमां के लिये ,
बुझती हुई शमां को मशाल बनानी पड़ेगी ।
''कमलेश''जीत होती हमेशा रही है सत्य की ,
झूठ पर यही जीत भविष्य की निशानी बनेगी ॥
1 comments:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
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