कब छटेंगे भय के बादल, कब होगी दूर उदासी ,
कब हम सब कह पाएंगे 'हम हैं भारतवासी' ।
सब मिल बैठें ,मिल कर, कुछ तो ऐसा सोचो ,
भेद-भाव की मैल को , अपने दिलों से पोंछों ,
क्या करोगे इन हालातों में जब, भारत मां की छाती पिघलती है ,
दिल फट जाता है इस माँ का भी, जब लालों की चिताएं जलती हैं,
कब तक दुश्मन खेलेगा हमारी 'भारत मां '' की अश्मत से ,
कब तक बाधें रखोगे अपने को ,राजनीति की किस्मत से ,
तोड़ो बंधन छोडो क्रन्दन ,बन ज्वाला मुखी फूट पड़ो ,
सर्वनाश की बन ज्वाला ,दुश्मन पर तुम टूट पड़ो ,
रोज-रोज किश्तों में मरना नही ,कुछ तो अब करना होगा ,
हमको अब जीना होगा, उनको अवश्य अब मरना होगा ,
'कमलेश 'नही हट सकती है, सबके ज़िम्मेदारी कंधों से ,
भगवान बचा ले अब भी देश को, राजनीति के फंदों से ॥
1 comments:
मन में आशा का संचार करती अच्छी रचना!
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