अंधेरों में तीर चल रहे हैं ,
बम धमाको में बेगुनाह मर रहे हैं ,
क्यों चिल-पों मचा रही जनता ,
हम जाँच तो कर रहे हैं ,
पूरी जिन्दगी शायद वो ना कमा पाते इतनी रकम ,
इक मुश्त हम ''चार -छे ''लाख दे रहे हैं ।
विरोधी हैं देश के जो हम पर शक करते हैं ,
आपकी सुरक्षा दिन-रात हम कर रहे हैं ।
आप को ही नही सबको मरने से लगता है डर ,
इसका अभिप्राय कदाचित नही की हम डर रहे हैं ।
''कमलेश''
3 comments:
बड़ा ही सटीक तीर चलाया है,बढ़िया रचना.
सुन्दर और सार्थक व्यंग| धन्यवाद|
bilkul sahi nishana ......... 4, 6 lakh to de rahe hain ...achha vyngya
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