भीग जाती थी तेरी आँखें...!!!
भीग जाती थी तेरी आँखें, मुझे याद करके ,
तब क्यों न देखा !तुमने मुझे जी भर के ॥
जब सामने थी तो न ,टिक सकी ये मुझ पर ,
अब क्यूँ करती हैं शिकवा, ये रह -रह करके ॥
इनकी उल्फत का न कोई ,सानी है इस जहाँ में ,
बसाये रखती हैं ये यादें ,अपने में मर करके ॥
कौन समझे इन आँखों की, दीवानगी को ''कमलेश ''
भीगने की अदा अता की, खुदा ने इनको जी भर के ॥
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8 comments:
सुन्दर रचना है जी
waah kya ankho ki ada paish ki hai.kaabile tareef hai.
apki gazel kal 11/6/10 ke charcha manch k liye select ki gayi hai.
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत सुन्दर गज़ल लिखी आप्ने ॥
waah sundar gazal...
इस पोस्ट के लिेए साधुवाद
सुन्दर रचना...
कौन समझे आँखों की इस दीवानगी को ...
वाह ...बहुत सुन्दर ....!!
्वाह्………बहुत सुन्दर्।
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