गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

हसरत -ए-दिल ...!!

तेरी हसरत थी जो दिल को ,वह खत्म हो गयी ,
अब वादे-वफा निभानी बस रस्म हो गयी

जी जाते गर तूने, रस्मे -उल्फत निभायी होती ,
बर्बादी की जगह, जिन्दगी की राह दिखाई होती

कहाँ ? देखे थे इन आँखों ने बहारों के सपने ,
तपती रेत के सहरा में फुहारों के सपने

उम्मीदों के समन्दर में ढूँढा था ,तेरे प्यार का मोती ,
सीप 'संग 'को समझ लेता, गर तुम साथ होती

उजड़ जाते गर बसने से पहले ,
रो लेती आँखें हंसने से पहले

दिल टूटता ,अरमां तार-तार होते ,
तुम बेवफा होती , हम बे ऐतबार होते

कुदरत करती रही हमेशा, बेरुखी मेरे साथ में ,
अब भी जिन्दगी की डोर, थमा दी तेरे हाथ में

ये है मेरी किस्मत ,नही किसी का दोष है ,
इस मुकाम पर देखो ?कुदरत भी खामोश है

''कमलेश'' क्या कहेगा जमाना, इस बात पर ,
जिन्दगी लगा दी है ,जिन्दगी की बिसात पर


5 comments:

kishore ghildiyal ने कहा…

bahut badhiya

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

ये है मेरी किस्मत ,नही किसी का दोष है ,
इस मुकाम पर देखो ?कुदरत भी खामोश है ।

बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ.... सुंदर ग़ज़ल....

Yashwant Mehta "Yash" ने कहा…

मनोहारी गज़ल.......बेफ़वा समझे तो जरा आशिक का दर्द

समयचक्र ने कहा…

बहुत बढ़िया गज़ल ...

निर्मला कपिला ने कहा…

ये है मेरी किस्मत ,नही किसी का दोष है ,
इस मुकाम पर देखो ?कुदरत भी खामोश है
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना। आपको व परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें