बुधवार, 24 फ़रवरी 2010 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

किस्मत....???

किस्मत में था तेरा साथ, ये था नही पता ,
भुगत रहा दिल जिसने, प्यार की थी खता.......?

मेरा तडपता है दिल, लब भी सिले हुए हैं ,
खता -- दिल के ,ये सिले मिले हुए हैं
कोई हाले मंजर मेरा उसे देता क्यों नही बता .......?

जिस बिन इक दिन भी जीना मुहाल था ,
रातें थी काँटों भरी ओर दिन भी बेहाल था
अब उसकी तस्वीर को आँखों से कोई ले हटा ......?

जिन्दगी के राहे -गुजर में आये कई मुकाम भी ,
कहीं सय्याद मिले, मिले कहीं यहाँ गुलफाम भी
जिन्दगी पूछती फिरती है फिर भी उसी का पता .....?

जमाने की नजर में जब हम आये ही नही थे कभी ;
फिर क्यूँ साफ झलकता है पसीना , पेसानी पर अभी
''कमलेश ''के दर्दे- जां का है इस दुनिया को पता .....??


3 comments:

समयचक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर...

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही सुन्दर व लाजवाब प्रस्तुति लगी ।

गुड्डोदादी ने कहा…

कमलेश जी
आयुष्मान भवः
आपकी गज़ल भाव पूर्ण है
मेरा तडपता है दिल .लब भी सिले हुए हैं \वह क्या लिखा आपने
जिंदगी पूछती फिरती है उसी का पता
दो तीन बार पढ़ी तो हाफिज जालंदरी की गजल की दो पंक्तियाँ
दो रोज में शबाब का आलम गुजर गया
बदनाम करने आया था बदनाम कर गया
ऐ मेरे रोने वालों कोई तो जवाब दो
कश्ती मेरी डुबो के वो दरिया में उतर गया
दो रोज में शबाब का आलम गुजर गया
धन्यवाद आशीर्वाद सहित
आपकी गुड्डो दादी
चिकागो से