कब तक करूं मै इंतजार, तेरे ज़वाब का ,
कहीं चेहरा ही न बदल जाये, मेरे ख्वाब का।
पहले तो नहीं थी सुर्खरू ,प्यार की शिद्दत इतनी ,
उलझन बढ़ी जब चर्चा हुई ,तेरे मेरे इंतखाब का। .
गर दिल को बना लेते जुबाँ ,अल्फाज़ सज़ा लेते ,
ना होता ज़माने को इंतजार ,तुमसे किसी ज़वाब का।
ना होती सरे बाज़ार रुशवा,हमारी मुहब्बत इस तरह ,
गर सलीके से किया होता 'एहतराम' फर्ज़े -हिज़ाब का।
'कमलेश' था खुली किताब ,कोई भी पढ़ लेता कभी ,
पर तुमने बना दिया इसे भी, 'पन्ना' बंद किताब का।।
कहीं चेहरा ही न बदल जाये, मेरे ख्वाब का।
पहले तो नहीं थी सुर्खरू ,प्यार की शिद्दत इतनी ,
उलझन बढ़ी जब चर्चा हुई ,तेरे मेरे इंतखाब का। .
गर दिल को बना लेते जुबाँ ,अल्फाज़ सज़ा लेते ,
ना होता ज़माने को इंतजार ,तुमसे किसी ज़वाब का।
ना होती सरे बाज़ार रुशवा,हमारी मुहब्बत इस तरह ,
गर सलीके से किया होता 'एहतराम' फर्ज़े -हिज़ाब का।
'कमलेश' था खुली किताब ,कोई भी पढ़ लेता कभी ,
पर तुमने बना दिया इसे भी, 'पन्ना' बंद किताब का।।
5 comments:
बढ़िया प्रस्तुति |
प्रभावी कथ्य |
आभार ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
मकर संक्रान्ति के अवसर पर
उत्तरायणी की बहुत-बहुत बधाई!
बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण गजल...
सुंदर भावमयी रचना
bahut achchi lagi.....
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