रविवार, 13 जनवरी 2013 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

कब तक करूं मै इंतजार, तेरे ज़वाब का.....!!!!

कब तक करूं मै इंतजार, तेरे ज़वाब का ,
कहीं चेहरा ही न बदल जाये, मेरे ख्वाब का।

पहले तो नहीं थी सुर्खरू ,प्यार की शिद्दत इतनी ,
उलझन बढ़ी  जब चर्चा हुई ,तेरे मेरे  इंतखाब का।  .

गर दिल को बना लेते जुबाँ ,अल्फाज़ सज़ा लेते ,
ना होता ज़माने को इंतजार ,तुमसे किसी ज़वाब का।

ना होती सरे बाज़ार  रुशवा,हमारी  मुहब्बत इस तरह ,
गर सलीके से किया होता 'एहतराम' फर्ज़े -हिज़ाब  का।

'कमलेश' था खुली किताब ,कोई भी पढ़ लेता कभी ,
पर तुमने बना  दिया  इसे भी, 'पन्ना' बंद किताब का।।

5 comments:

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति |
प्रभावी कथ्य |
आभार ||

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
मकर संक्रान्ति के अवसर पर
उत्तरायणी की बहुत-बहुत बधाई!

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण गजल...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

सुंदर भावमयी रचना

mridula pradhan ने कहा…

bahut achchi lagi.....