कैसा है विद्रूप रूप अभिव्यक्ति की, आज़ादी का ,
कहीं षड्यंत्र तो नही है ये ,अधिकारों की बर्बादी का।
प्रजातंत्र के नाम को लेकर, ये क्या-2 करते हैं ,
अपनी तिजोरियां भरते हैं ,आम-जन भूखो मरते हैं।
मन की पीड़ा के निरूपण को जब , कलम-कूची की धार चली ,
लोक-तन्त्र की दे दुहाई उन पर ही , कानूनी तलवार चली।
पर जिनके मन है प्रेम-विक्षोभ उनको,इनकी परवाह नही ,
होने को महिमामंडित ;राजतन्त्र' से, उनको कोई चाह नही।
सारा देश जगाने को वो , अग्नि-पथ पर चलते जाते हैं ,
कोई कविता की रचना करते हैं ,कोई ;कार्टून 'बनाते हैं।
' ये क्यों नही समझते ;कमलेश' इनके मन का मर्म नही ,
जो ली है जिम्मेदारी निभाने की ,क्या? ये इनका धर्म नही।।
कहीं षड्यंत्र तो नही है ये ,अधिकारों की बर्बादी का।
प्रजातंत्र के नाम को लेकर, ये क्या-2 करते हैं ,
अपनी तिजोरियां भरते हैं ,आम-जन भूखो मरते हैं।
मन की पीड़ा के निरूपण को जब , कलम-कूची की धार चली ,
लोक-तन्त्र की दे दुहाई उन पर ही , कानूनी तलवार चली।
पर जिनके मन है प्रेम-विक्षोभ उनको,इनकी परवाह नही ,
होने को महिमामंडित ;राजतन्त्र' से, उनको कोई चाह नही।
सारा देश जगाने को वो , अग्नि-पथ पर चलते जाते हैं ,
कोई कविता की रचना करते हैं ,कोई ;कार्टून 'बनाते हैं।
' ये क्यों नही समझते ;कमलेश' इनके मन का मर्म नही ,
जो ली है जिम्मेदारी निभाने की ,क्या? ये इनका धर्म नही।।
1 comments:
saarthak srijan, badhai.
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