जिन हवाओ की कोई मंजिल .....!!!!
जिन हवावों की कोई मंजिल ना हो ,उनको यहाँ उतारा जाये ,
बिगड़ी हुई है जो शक्ल आईने की ,उसको जरा सुधारा जाये ।
जिन कानों में ना पहुँचती हो आवाम की थोड़ी भी आवाज ,
बताओ ?उनको किस नाम से , अब किस तरह पुकारा जाये ।
जलती तो है चिंगारी की लौ सबके रुई जैसे नाज़ुक दिल में ,
पर उसे कैसे ? धधकते अंगारों के मानिंद उभारा जाये ।
जो लोग समझते हैं हम एवरेस्ट पर, बैठे पहले से ही थे ,
उनको यथार्थ के धरातल पर, जबरदस्ती उतारा जाये ।
''कमलेश'' क्यों नहीं समझते की ,कर्म जग में करो ऐसा ,
नाम की वजह से नहीं, काम को याद कर पुकारा जाये ..
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1 comments:
Excellent!
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