इस आलम में हर तरफ, फैली क्यूँ बदहवासी है ,
नूर भरे चेहरों पर छाई , ये कैसी सर्द उदासी है ।
क्यों ? नही गर्म जोशी से थामते ,इक दूसरे का हाथ ,
क्या ? इसमें भी कोई साजिस रची सियासी है ।
हम साया जो रहे , दुखो-दर्द का साया बन कर ,
कत्लो -गारत की उनकी नियत, क्यों बनी पिशाची है!!!
जिस बात को समझने में , मुद्दतें लगा गयी इनकी पुश्तें ,
इन्सान-इंसानियत को समझे , बस इतनी बात जरा सी है ...!
'कमलेश' खौफ जदा चेहरों में लाश, इंसानियत की दिखती है ,
है कोई ज़रूर नश्तर चुभा दिल में,सबको लगता है बात जरा सी है ..!!!
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