बूंदों कहीं और जा कर ...!!!!
बूंदों कहीं और जा के ,
किसी दामन को भिगाएं ,
जो पहले से जल रहा है ,
उसे और न जलाएं ।
तुम्हारी स्याह धरा को देख ,
मन मेरा भी मचलता है ,
पर होता है वही किस्मत के सामने ,
वस किसी का न चलता है ॥
मान जाएँ हमें और न tarfayen......
तुम्हारे गिरने से ,हर तरफ ख़ुशी होगी ,
हम गर गिरे तो हमारी ,बेबसी ,होगी ।
हमें अपनी ही नजरों से न गिराएँ........
तुम्हारी छुवन बन उठी है चुभन इस बरसात में ,
क्यों जलन हो रही है ,तुम्हारी इस सौगात में ,
''कमलेश''इस प्यार को प्यार से सजाएँ ...बूंदों ...!!!!!!
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2 comments:
सुन्दर रचना....बधाई।
प्यार तो प्यार हैं ...जहाँ होगा वहाँ तड़प भी होगी ....
किसी की दुआयों में भी इतना असर ना था
कि सुकून मिलता मुझे ,उसकी पनहा में |....अंजु(अनु)
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