रविवार, 12 अगस्त 2012 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

बूंदों कहीं और जा कर ...!!!!


बूंदों कहीं और जा के ,
किसी दामन को भिगाएं ,
जो पहले से जल रहा है ,
उसे और न जलाएं

तुम्हारी स्याह धरा को देख ,
मन मेरा भी मचलता है ,

पर होता है वही किस्मत के सामने ,
वस किसी का न चलता है ॥
मान जाएँ हमें और tarfayen......

तुम्हारे गिरने से ,हर तरफ ख़ुशी होगी ,
हम गर गिरे तो हमारी ,बेबसी ,होगी
हमें अपनी ही नजरों से न गिराएँ........

तुम्हारी छुवन बन उठी है चुभन इस बरसात में ,
क्यों जलन हो रही है ,तुम्हारी इस सौगात में ,
''कमलेश''इस प्यार को प्यार से सजाएँ ...बूंदों ...!!!!!!


2 comments:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सुन्दर रचना....बधाई।

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

प्यार तो प्यार हैं ...जहाँ होगा वहाँ तड़प भी होगी ....

किसी की दुआयों में भी इतना असर ना था
कि सुकून मिलता मुझे ,उसकी पनहा में |....अंजु(अनु)