आदमी डरता है हमेशा अपने इम्तिहान से ,
खौफ जदा रहता है खुद के नुकसान से ।
ना फ़िक्र है ज़माने की ,ना दहशत है खुदा की ,
हमेशा खौफ खाता है ,सिर्फ इन्सान से ।
अपनी करतूतों का कोई ख्याल नही उसको ,
दूसरो को नसीहत ''काम करो इमान से''।
जबकि सब हैं उस खुदा की नियामत यहाँ ,
कुछ सोचतें है वह टपके हैं आसमान से ।
''कमलेश''कभी क्यों नही सोचते ये नादाँ ,
गर डरना है तो डरो उस ,खुदा भगवान से ॥
4 comments:
बहुत खूब ...
आपके इस खूबसूरत पोस्ट का एक कतरा हमने सहेज लिया है, तेजाब :- मनचलों का हथियार - ब्लॉग बुलेटिन, के लिए, पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
क्या आज के इंसान से किसी से डरना सीखा हैं ?
बहुत सुन्दर भाव ग़ज़ल की उम्दा कोशिश शुभकामनायें
बहुत संदर प्रस्तुति !
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