पतझड़ों को हमेशा सावन की दरकार होती है ,
इक बार नही जीवन में बारम्बार होती है ,
इस सावन की ले ओट कहीं प्रेम पुष्प खिलतें हैं ,
पा कलियों की स्निग्ध छुवन मतवाले हो फिरते हैं ,
प्रेमातिश्योक्ति जब भंवरों में अति भर जाती है ,
ले सायं काल गोद में अपनी कली खुद भी मर जाती है
,
इस मौसम की रंगीनी में सब कुछ सुहाना होता है ,
जो कली रही अध् -खिली ,उसका भी अफसाना होता है ,
सावन की इस मस्ती को ,जीवन में hd तक उतार लो ,
,कमलेश ' गर ख़ुशी कम पड़े ,तो किसी से बे-शक 'उधार ' लो ॥ ..
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पतझरों को हमेशा सावन की दरकार होती है ,
इक बार नही जीवन में इनको बारम्बार होती है ॥
1 comments:
हरियाली तीज के अवसर पर अच्छी रचना लिखी है आपने!
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