क्यों ?निरर्थक बोझ लाद कर फिरते हो सीने में ,
फ़िक्र मुक्त करो जिन्दगी ,आएगा मज़ा जीने में ॥
इत्र -सुगंधों से नही आती वो ...खुशबू !!
जो भीनी-भीनी आती,मेहनत के पसीने में ॥
हमने शराब पी के मरते बहुत देखे हैं.....
गर जानी है तो जाये दूजों के गम पीने में ॥
जिदगी तो खुद फंसी है ,किसी के जाल में ,
अपने कितने ही निशां छुपा रखे है सीने में.. ॥
3 comments:
waah sirji bahut achche...
खूबसूरत शब्दों से संजोयी खूबसूरत रचना.... खूबसूरती से दिल में उतर गई....
वाह बहुत खूब प्रेरणादायक रचना.
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