उल्फत नही थी दिल में ,तो दिल को रुलाया कैसे ?
मंजिल तलक कसमों को, यूँ ही तुमने भुलाया कैसे ?
गर पता होता दिल को, तेरी इस बात का,
क्या दर्द भरा सिला दिया ,मेरे जज्बात का ।
पहले ही मोड़ लेते अपने ,अरमानों की नाव को ,
गर न दिलाया होता यकीं , प्यार कि बरसात का ।
मझधार में छोड़ दी पतवार ,प्यार के इमकान की ,
फना हो के चुका दी हमने, कीमत तेरे अहसान की ।
हमेशा मेरी रूह दुआ करे ,तेरे आबाद रहने की ,
पर न दे खुदा तुझे मौका ,किसी को अपना कहने की ।
'कमलेश 'तुम्ही ने इस जिन्दगी को, इक दम से मोड़ा था ,
शिकवा है तोडा उसी दिल को, जिससे तुमने ही जोड़ा था ॥
2 comments:
सार्थक प्रयास- शुभकामनाएं.
मझधार में छोड़ दी पतवार ,प्यार के इमकान की ,
फना हो के चुका दी हमने, कीमत तेरे अहसान की ।
-वाह!! बढ़िया!
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