था किस्मत में लिखा ,
आपका दीदार हो गया। ,
जो सपना था अधूरा .
वह साकार हो गया ।।
गर प्रबुद्ध जनों का संग ,न मिला होता ,
मुझे शिकवा होता जिन्दगी से ,
जिन्दगी को मुझसे गिला होता ।
चलो खत्म जिदगी का इंतजार हो गया ॥
अहसासों के अहसास का एहतराम तो हुआ ,
मन में उठे प्रश्नों का विराम तो हुआ ॥
जिन्दगी का यह पड़ाव ,''कमलेश'' की ,
मंजिलों में शुमार हो गया ।।
3 comments:
गर प्रबुद्ध जनों का संग ,न मिला होता ,
मुझे शिकवा होता जिन्दगी से ,
जिन्दगी को मुझसे गिला होता ।
चलो खत्म जिदगी का इंतजार हो गया ॥
अच्छी रचना है बधाई
वाह .. बहुत बढिया लिखा है आपने !!
बहुत खूब, कमलेश भाई..शानदार!!
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