मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

कौन होना चाहता है ..?!!!

कौन होना चाहता है ?

यहाँ बे-आबरू

ये वक्त ही है ,
बे-शर्म बना देता है

हसरत मुझे भी थी,

आसमान छूने की ,

वक्त ,कोशिशों की सीढ़ी को ,

बे-वक्त गिरा देता है

संभल -संभल कर बढ़ रहे थे ,

जानिबे - मंजिल ,

जो कभी खत्म हो राह ,

वक्त,पकडा वो सिरा देता है

टूटते हौंसलों को ,

कैसे सम्भाले ''कमलेश'' ,

बसे बसाये घरौंदों पर ,

वक्त बिजली गिरा देता है ,

हिम्मत से तोड़ दोगे

वक्त के हौसले ,

वक्त ही देखो ?

जिन्दगी को मशविरा देता है ,

2 comments:

Randhir Singh Suman ने कहा…

जिन्दगी को मशविरा देता है ॥
suman.barabanki



mo.n. 9450195427

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सही .. परिस्थितियां सबकुछ झेलने को मजबूर कर देती हैं .. समय बहुत बलवान होता है .. लेकिन मनुष्‍य अपनी दृढ इच्‍छा शक्ति से तो उससे उबर ही जाता है !!