कौन होना चाहता है ?
यहाँ बे-आबरू ।
ये वक्त ही है ,
बे-शर्म बना देता है
हसरत मुझे भी थी,
आसमान छूने की ,
वक्त ,कोशिशों की सीढ़ी को ,
बे-वक्त गिरा देता है ।
संभल -संभल कर बढ़ रहे थे ,
जानिबे - मंजिल ,
जो कभी खत्म न हो राह ,
वक्त,पकडा वो सिरा देता है ।
टूटते हौंसलों को ,
कैसे सम्भाले ''कमलेश'' ,
बसे बसाये घरौंदों पर ,
वक्त बिजली गिरा देता है ,
हिम्मत से तोड़ दोगे
वक्त के हौसले ,
वक्त ही देखो ?
जिन्दगी को मशविरा देता है ॥ ,