रविवार, 6 सितंबर 2009 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

आप ही समझाओ

क्या करुँ ? इस दिल का ,परेशान है उस के लिए,
इस तरह की बात है ;आम'जिसके लिए, '

आप ही समझा दो इस बे -गैरत को ,
सुबह शाम यही काम, है किसके लिए ?

अपनी नही तो ''कमलेश'' की सोचे ! ,
क्यूंकि ?ये भी ''आम'' बात है इसके लिए

3 comments:

ओम आर्य ने कहा…

बढिया लिखा है भाई.....

संजीव गौतम ने कहा…

कमलेश जी हौसला बढाने के लिये धन्यवाद.
इस बहाने आपके ब्लाग पर आने का सौभाग्य मिला.
आप ही समझा दो इस बे -गैरत को ,
सुबह शाम यही काम, है किसके लिए ?
अच्छी रचना है.
आगे भी मुलाकात होती रहेगी.

दर्पण साह ने कहा…

आप ही समझा दो इस बे -गैरत को ,

wah !!