इन्सान न मरूं मै ,यह इच्छा जरूर होती है ,
कुछ ऐसा करुँ ,यह शिक्षाजरूर होती है ।
हो लेते हैं खुश ,जीते
जी कुछ करने के
बाद , हो संसार को खुसी ,तुम्हारे मरने के बाद ,
जाते जाते इस दुनिया से,
एक काम कर जाओ ,
इन अमूल्य आंखों को, दान कर जाओ ।
नेत्र तुम्हारे देंगे
दो लोगों को जोत ,
जीवन प्रकाशमय होगा ,पा नेत्रों का श्रोत ।
परिजन इस शरीर को ,कर देंगे खाक ,
नेत्र दान कर फैला दो जीवन में प्रकाश ,
कुछ नही जाता साथ में .कहते संत और ग्रन्थ ,
इस करके नेत्रदान करो ,अवस्य मरन उपरंत ।
नेत्रदान में ''कमलेश ''गर कोई ऐब होती ,
,तो दोस्तों जाते वक्त ,जरूर' कफ़न' में जेब होती ॥
2 comments:
प्रभावी लेखन.
उम्दा विचार!
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