Kamlesh Bhagwati Parsad Verma
बाराबंकी के रहने वाले कमलेश जी पेशे से ऑप्टोमेट्रिस्ट हैं व फिलहाल राजकीय मेडिकल कॉलेज, पटियाला में ऑप्थलमिक ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं, बहुत पुराने, ब्लॉगिंग के समय से मित्र हैं।
अपने बारे में लिखते हुए कमलेश जी कहते हैं "आस्तिक हूँ, पाखण्डी नहीं" मुझे उन पर यकीन है, उनकी यही आस्था उनकी वॉल पर भी झलकती है।
कमलेश जी जम कर पद्य लिखते हैं, अपनी वॉल पर भी और ब्लॉग पर भी, कभी कभी अपने लिखे को वे गज़ल भी कहते हैं, एक बात मैं बहुत लंबे समय से उन्हें कहना चाहता था पर अवसर आज मिल रहा है, वह यह कि उनकी रचनाओं के इम्पैक्ट में थोड़ी कमी रह जाती है, महज़ इसलिये, कि, अतुकान्त नई कविता तो वह हैं नहीं, न ही नई कविता की उनकी विषयवस्तु है और गज़ल अथवा तुकान्त अन्य विधाओं के छन्द विधान को वह फॉलो नहीं करतीं, मुझे लगता है कि कमलेश जी गज़ल के व्याकरण को जानते-समझते हैं, परन्तु अपनी गजलों को न जाने क्यों बहर की कसौटी से गुजारते नहीं, यदि वे बहर में गज़ल लिखें तो ज्यादा धारदार व इम्पैक्टफुल लिख पायेंगे।
बाकी समसामयिक विषयों पर चल रही चर्चाओं पर कमलेश जी भी कभी कभी उपस्थित रहते हैं, परन्तु पिछले कुछ समय से उनके इस दखल में एक किस्म की तल्ख़ी या उग्र आक्रामकता देख रहा हूँ मैं, जबकि, पहले वे ऐसे नहीं थे...
उन्हीं से शब्द उधार लेते हुए...😊
पहले तो नहीं था मिज़ाज़
ये मेरे यार (शहर) का
अब लग गई किसकी
काली नज़र है।💐
अनन्त-अशेष शुभकामनाएं मित्र... 👍💐🙏
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