शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

ये जो ज़ख्म...!!

ये जो ज़ख़्म ,शिक़वे गिले हैं,
ग़ैरों से नहीं अपनों से
मिले है।💐

किससे करूं शिकवा'कमलेश'
ये तो 
सदियों से चलते आये
सिलसिले हैं।💐

देख कर जिनको खुश हो रही है
दुनिया
ये वही हैं जो खुद से भी ना
अब तक मिले हैं।💐

जज़्ब  किये सीने में
दर्द के समंदर को
अश्क़ बयां कर देते हैं
लब अब तक सिले हैं।💐

किसी ने जब भी 
कोशिश की मरहम लगाने की
राहत तो नहीं ज़ख़्म और भी 
खिले हैं।💐

@कमलेश वर्मा 'कमलेश'💐