ये जो ज़ख़्म ,शिक़वे गिले हैं,
ग़ैरों से नहीं अपनों से
मिले है।💐
किससे करूं शिकवा'कमलेश'
ये तो
सदियों से चलते आये
सिलसिले हैं।💐
देख कर जिनको खुश हो रही है
दुनिया
ये वही हैं जो खुद से भी ना
अब तक मिले हैं।💐
जज़्ब किये सीने में
दर्द के समंदर को
अश्क़ बयां कर देते हैं
लब अब तक सिले हैं।💐
किसी ने जब भी
कोशिश की मरहम लगाने की
राहत तो नहीं ज़ख़्म और भी
खिले हैं।💐
@कमलेश वर्मा 'कमलेश'💐
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें