🌹🌹🌹मां 🌹🌹🌹
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एक दिन ही क्यूँ❓ मां का मनाते हैं हम। 🌹
है कितना प्यार, दुनिया को बताते हैं हम।
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नहीं गुजरता था ,जिसके बिना एक छिन। 🌹
हम मनाने लगे, उसके लिए एक दिन। 🌹
जिसकी आँचल की छाँव में ,पल कर बढे। 🌹
जिसकी उंगली पकड़ ,हम सब आगे बढे।
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कहीं गिर पड़े पाँव में, कोई ठोकर लगी। 🌹
बेजान पत्थरों की भी, बुरी शामत बनी।।
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सर्दी, गर्मी, भूख के अहसास से परे🌹
बैठी सिरहाने रही , हाथ सिर पर धरे। 🌹
कितनी रातें होंगीं , कितने काटे थे दिन। 🌹
और हम मनाते सिर्फ ,उसका एक दिन.. ।।
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मां का दुनिया में कहीं कोइ, सानी नहीं। 🌹
मां से खूबसूरत प्रकृति में, दूजी निशानी
नहीं। 🌹
स्व अस्तितव् असम्भव है ,अपनी माँ बिन।। 🌹
और मनाते हैं सिर्फ ,उसका एक दिन ..।।
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'कमलेश' ना जाए कोइ माँ ,आश्रमों की डगर। 🌹
सजा कर रखो पास सदा, मां-पारस पत्थर। 🌹
हो माँ संग हमारे ,हर पल हर छिन ।।
अब मनायेंगे हम, मार्तु दिवस हर दिन..।।
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🌹कमलेश वर्मा 'कमलेश' 🌹
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