रविवार, 16 सितंबर 2018 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

ये कैसा शहर है..💐

ये कैसा शहर है
ना कोई आहट
ना कोई खबर है।💐

क्यूँ उनींदा सा है ए
बोझिल पलकों में
ये सुबह की पहर है।💐

क्यूँ फ़िज़ां में है फैला
धुँआ धुँआ सा ये !
येआलूदगी का ज़हर है।💐

रवाँ जवाँ ज़िन्दगी थी
जिसकी सुबह शाम
ये अब क्यूँ गया ठहर है।💐

पुर अमन की हक़ीक़त
है अब जब यहां,
ये क्यूँ नहीं चेहरों पर
आता नज़र है।💐

अपनों ने ही अपनों को
दगा दे दिया
बे भरोसगी की हद
यहां इस क़दर है।💐

पहले तो नहीं था मिज़ाज़
ये मेरे शहर का
अब लग गई किसकी
इसको काली नज़र है।💐

ढूंढो जिसने फैलाई
है अफवाह मेरे शहर में
ढूंढता उसको हर बशर है।💐

कमलेश' ऐसा नहीं है
जैसा सोचते है लोग
ये ज़िन्दा दिल लोगों का
शहर है।💐

देखना है तो इसको
अल सुबह देखो
कितनी खूबसूरत
इसकी सहर है।।💐