गुरुवार, 13 दिसंबर 2012 | By: कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹

क्यों पत्थर हुआ ये दिल टूटता नहीं.....!!!!

क्यों पत्थर हुआ ये दिल टूटता नहीं ,

कितने गम सह कर ये  क्यूँ रूठता नहीं . 


गमों का समन्दर जज्ब  कर रखा है सीने में ,

आसूओं का निर्झर फिर भी क्यूँ फूटता नहीं ,


इतने सदमे सह कर इस बेदर्द ज़माने के फिर भी ,

क्यूँ  अपने दोनों हाथों से सीने को कूटता नहीं ,


हमने उनको छोड़ दिया है जिंदगी के कारवां से ,

पर पुरानी  यादों  से पीछा छूटता नहीं ,


'कमलेश' खुद को लुटवाने की अपनी फितरत है,

 नही ऐसे ही कोई किसी के 'कारवां' को लूटता नहीं ..........

2 comments:

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

ये दिल कमबख्त....फिर भी धड़कना बंद नहीं करता ...बहुत जिद्दी है

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत बढिया रचना..

गमों का समन्दर जज्ब कर रखा है सीने में ,
आसूओं का निर्झर फिर भी क्यूँ फूटता नहीं ,