क्यों पत्थर हुआ ये दिल टूटता नहीं ,
कितने गम सह कर ये क्यूँ रूठता नहीं .
गमों का समन्दर जज्ब कर रखा है सीने में ,
आसूओं का निर्झर फिर भी क्यूँ फूटता नहीं ,
इतने सदमे सह कर इस बेदर्द ज़माने के फिर भी ,
क्यूँ अपने दोनों हाथों से सीने को कूटता नहीं ,
हमने उनको छोड़ दिया है जिंदगी के कारवां से ,
पर पुरानी यादों से पीछा छूटता नहीं ,
'कमलेश' खुद को लुटवाने की अपनी फितरत है,
नही ऐसे ही कोई किसी के 'कारवां' को लूटता नहीं ..........
कितने गम सह कर ये क्यूँ रूठता नहीं .
गमों का समन्दर जज्ब कर रखा है सीने में ,
आसूओं का निर्झर फिर भी क्यूँ फूटता नहीं ,
इतने सदमे सह कर इस बेदर्द ज़माने के फिर भी ,
क्यूँ अपने दोनों हाथों से सीने को कूटता नहीं ,
हमने उनको छोड़ दिया है जिंदगी के कारवां से ,
पर पुरानी यादों से पीछा छूटता नहीं ,
'कमलेश' खुद को लुटवाने की अपनी फितरत है,
नही ऐसे ही कोई किसी के 'कारवां' को लूटता नहीं ..........
2 comments:
ये दिल कमबख्त....फिर भी धड़कना बंद नहीं करता ...बहुत जिद्दी है
बहुत बढिया रचना..
गमों का समन्दर जज्ब कर रखा है सीने में ,
आसूओं का निर्झर फिर भी क्यूँ फूटता नहीं ,
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