उल्झन यही है मन की ,उलझन सुलझती ही नही ,
गर सुलझना ही होता ,नजर उनसे उलझती ही नही ......}{
देखने में सब कुछ मानिन्दे-वक्त था हर तरफ ,
गर न होती चिंगारी तो आग सुलगती ही नही .
गर वक्त ने ना नोचे होते पंख उसके इस कद्र ,
परवाज़े -मंजिल तक पहुँच जाती तो बिलखती ही नही '
पता था मुहब्बत का दुश्मन है जब की ज़माना ,
फिर भी इसके जूनूने -ख़ुमारी सर से उतरती ही नही .
वक्त के तूफानों ने कई बार उजाड़ा आशियाने को मेरे ,
आपसी रिश्तों की मजबूत डोरी है कि टूटती ही नही .
''कमलेश''कोशिश बहुत की शक्लो-सूरत बदलने की ,
मगर इन उलझनों के रहते खुद की शक्ल निखरती नही ........[]\
गर सुलझना ही होता ,नजर उनसे उलझती ही नही ......}{
देखने में सब कुछ मानिन्दे-वक्त था हर तरफ ,
गर न होती चिंगारी तो आग सुलगती ही नही .
गर वक्त ने ना नोचे होते पंख उसके इस कद्र ,
परवाज़े -मंजिल तक पहुँच जाती तो बिलखती ही नही '
पता था मुहब्बत का दुश्मन है जब की ज़माना ,
फिर भी इसके जूनूने -ख़ुमारी सर से उतरती ही नही .
वक्त के तूफानों ने कई बार उजाड़ा आशियाने को मेरे ,
आपसी रिश्तों की मजबूत डोरी है कि टूटती ही नही .
''कमलेश''कोशिश बहुत की शक्लो-सूरत बदलने की ,
मगर इन उलझनों के रहते खुद की शक्ल निखरती नही ........[]\
2 comments:
बहुत बढ़िया!
यह उलझन तो सभी के साथ है!
वक्त के तूफानों ने कई बार उजाड़ा आशियाने को मेरे ,
आपसी रिश्तों की मजबूत डोरी है कि टूटती ही नही .
रिश्तों की डोर यूँ ही बंधी रहें :)
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