जिन्दगी के सफर में ऐसा मुकाम आया है,
जिन्दगी ने खोया ही है न कुछ पाया है।
हैरान हैं फिजायें वक्त का मंजर देख कर,
हैरान हैं हम हवाओं के बदले तेवर देख कर।
ज़रूर होती है सुबह हर ढलती शाम की ,
गर हो न सुहानी तो फिर किस काम की।
जहाँ गूंजती थी हवाओं की मदमस्त सरगोशियाँ ,
क्यों सिसकती हैं फिजाओं में ये खामोशियाँ .
अब तक न उनका कोई इजहारे पयाम आया है ,
कमलेश 'जिन्दगी ने खोया ही है न कुछ पाया है।
जिन्दगी ने खोया ही है न कुछ पाया है।
हैरान हैं फिजायें वक्त का मंजर देख कर,
हैरान हैं हम हवाओं के बदले तेवर देख कर।
ज़रूर होती है सुबह हर ढलती शाम की ,
गर हो न सुहानी तो फिर किस काम की।
जहाँ गूंजती थी हवाओं की मदमस्त सरगोशियाँ ,
क्यों सिसकती हैं फिजाओं में ये खामोशियाँ .
अब तक न उनका कोई इजहारे पयाम आया है ,
कमलेश 'जिन्दगी ने खोया ही है न कुछ पाया है।
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