कैसी है ! ये स्याह रात , कैसी ये तन्हाई है ,
फिर क्यूँ ऐसे हालत में, तेरी याद आयी है ,
ना कोई सबब बनता है ,दिल तुझे याद करे ,
मगर जिगर में क्यूँ कर, हूक सी उठ आयी है ,
पुराने जख्म ना कुरेदे कोई, यादों के खंजर से ,
बड़ी मुश्किल से इससे ,दिल ने निजात पाई है ,
कैसे जी लेते है वो ! बे-वफाई के दागों के साथ ,
कभी नही हुई देखो जमाने में, इनकी रुसवाई है ,
जलाल-ए-इश्क को ज़नाब , कमतर ना आंकिये ,
'कमलेश' इश्क के जलवों में ये कायनात नहाई है ॥
3 comments:
बेहतरीन!!
बहुत सुन्दर , सार्थक रचना , सार्थक तथा प्रभावी भावाभिव्यक्ति , बधाई
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