जमाने में अब एक लहर आ रही है ,
सुनहरे रंगों भरी इक सहर आ रही है ,
कोई देखे ना देखे इसके ज़लाल को ,
बन के जलजला और कहर आ रही है ,
जो समझते है इसे सिर्फ पत्तों का धुवां ,
तपिश उसकी सबको अभी से नजर आ रही है ,
हिल जाएँगी उनकी भी इमानो की चूलें ,
अब तक जो वक़्त से बे-असर आ रही हैं ,
वो बे-जुबां भी अब बोलने लगे हैं ,ज़नाब ,
'कमलेश'अब जंतर-मन्तर से , सही खबर आ रही है
1 comments:
बहुत सुन्दर लाजवाब रचना| धन्यवाद|
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