किससे करूं मै बात ,उन जनाब की
किससे करूं मै बात ,उन जनाब की
जिनसे की है मुहब्बत बे-हिसाब की
दीखते नही वो दिन में ,रातें भी स्याह हुई
हुई मद्धम रोशनाई मेरी वफ़ा-ए-महताब की
किससे गिला करूं कहाँ तहरीर दूं ?
कोई ढूंढ लाये तस्वीर मेरे ख्वाब की
बिखर जाएगी शर्मो -हया इस जहाँ में
जो बरसों से हिफाजत में है हिजाब की
..कमलेश
2 comments:
बहुत सुन्दर गज़ल है!
सच में आपकी रचनाएँ तो दिल को छू लेती हैं...
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